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लेखनी कहानी -05-Jan-2023 (31) अंत भला तो सब भला ( मुहावरों की दुनिया )



शीर्षक = अंत भला तो सब भला


"पता ही नही चला की कब पूरा महीना पलक झपकते अपनों के साथ गुज़र गया, कल का ही दिन लगता है, जब मानव और राधिका गांव आये थे, और अब देखो आज की रात उनकी इस घर में और इस गांव में आखिरी रात है, कल वो सब चले जाएंगे, फिर हम दोनों ही यही रह जाएंगे " सुष्मा जी ने कहा दीन दयाल जी से, जो की करवट बदले सोने की कोशिश कर रहे थे


"मैं जानती हूँ, आपको भी मेरी तरह नींद नही आ रही है, इसलिए ही तो करवट बदले सोने की कोशिश कर रहे है, आपको भी बहु बेटे और पोते के जाने का दुख है न " सुष्मा जी ने कहा


दीन दयाल जी ने करवट बदली और उठ कर बैठते हुए बोले " दुख तो है, लेकिन क्या कर सकता हूँ?  जाने वाले को किसी ने रोका है आज तक जो मैं रोक पाउँगा "


"सही कहा आपने, लेकिन आप आशीष को माफ कर दीजिये, उसे एक बार पहले जैसा गले लगा लीजिये, अब वो खुद चल कर आया है, तो आप भी एक कदम बड़ा कर उसे गले से लगा लीजिये, आखिर हमारा बेटा है, और हम माता पिता भला कैसे उससे नाराज़ रह सकते है, नही रहना चाहता था वो यहां इस गांव में, इसलिए वो शहर चला गया, अब जाने भी दीजिये " सुष्मा जी ने कहा


"आपसे किसने कहा की मैं आशीष से नाराज़ हूँ, हाँ बस थोड़ा दिल दुखा था मेरा उसका इस तरह हम सब को छोड़ कर चले जाने पर और मेरे कहने के बावज़ूद गांव में रहकर मरीज़ों का इलाज नही करने के बजाये शहर जाकर वहाँ के लोगो का इलाज करने पर, लेकिन अब मुझे भी समझ आ गया है, आखिर उसने मेहनत की थी तो उसे मेहनत का सिला मिलना चाहिए था, जो शायद उसे इन गांव वालों का इलाज करके नही मिलता,


मैं ही गलत था, शायद और अब मुझे अपनी गलती का एहसास होने लगा है " दीन दयाल जी ने कहा


"नही, न आप गलत थे और न ही आशीष बस आप दोनों के सोचने का नजरया अलग था, इसलिए खुद को दोष न दीजिये, देर आये दुरुस्त आये, अब सुबह उसे गले लगा कर विदा करना ताकि अगली बार आने पर उसे सोचना नही पड़े " सुष्मा जी ने कहा


"ठीक है, अब सौ जाइये आप को सुबह जल्दी उठना है, काफी काम है आपको, चलिए अब सौ जाते है " दीन दयाल जी ने कहा और करवट बदल ली


सुष्मा जी ने भी ज्यादा कुछ नही कहा, क्यूंकि उन्हें आभास हो रहा था की दीन दयाल जी भी उदास है, और वो भी करवट बदल कर सौ गयी


वही दूसरी तरफ मानव भी सौ गया था और राधिका और आशीष दोनों बाते कर रहे थे, राधिका उसे बता रही थी की इन दिनों उसने बहुत अच्छे पल गुज़ारे थे, अगर वो भी शुरू से उनके साथ आ जाता तो बहुत अच्छा होता

आशीष को भी लग रहा था, कि राधिका सही कह रही है, उसे अपनी नाराजगी के चलते उन्हें इस तरह अकेले नही आने देना चाहिए था, अब तो उसका भी मन कर रहा था कि वो कुछ और दिन वहाँ रुके, लेकिन अब नामुमकिन सा था, क्यूंकि मानव का स्कूल खुल रहा था और राधिका कि भी छुट्टियां ख़त्म होने वाली थी जो उसने अस्पताल से लीं थी


खेर जो भी पल उन्होंने गुज़ारे वो याद गार थे, इस बात कि उन्हें ख़ुशी थी, और वैसे भी वो कोई आख़री बार गांव को छोड़ कर थोड़ी जा रहे थे, अब तो आना जाना लगा रहेगा जब भी समय मिलेगा


काफी देर बाद बाते करते करते वो लोग भी सौ गए, और सवेरे चिड़ियों के चेह चाहाने से आँख खुली, आज तो सब लोग ही उठ गए थे, मानव भी क्यूंकि थोड़ी देर बाद उन्हें निकलना जो था ड्राइवर के साथ ड्राइवर रास्ते में ही था


अब मानव के पास उसका आखिरी मुहावरा बचा था जिसे वो अपने दादा के पास लेकर जाने वाला था, लेकिन उसे कुछ अच्छा नही लगा रहा था, शायद गांव और दादा दादी के छूट जाने का सदमा था उसे


वो सुबह से ही मूंह लटकाये हुए था, भले ही उसकी सारी कहनिया लिख गयी थी, लेकिन फिर भी वो मूंह लटकाये घूम रहा था


और इसी तरह वो अपना आखिरी मुहावरा लेकर अपने दादा के पास गया, जहाँ बाकी सब तो अपने अपने कामों में लगे हुए थे, वही दीन दयाल जी उदास चेहरा लिए आँगन में बैठे थे, क्यूंकि उन्हें भी तो दुख हो रहा था उन सब के जाने का


"दादा जी, आप उदास न हो हम जल्द आएंगे " मानव ने कहा पीछे से आकर

ये सुन दीन दयाल जी ने मुड़कर देखा तो मानव खड़ा था उन्होंने उसे अपनी गोदी में बैठा कर ढेर सारा प्यार किया, उनकी आँखे नम थी, मानो बस अश्रु कि धारा बहने वाली थी, लेकिन उन्होंने उसे रोक लिया


और बोले " अच्छा तो आपका आज का आखिरी मुहावरा कौन सा है,? लाओ जल्दी से बताओ इससे पहले कि ड्राइवर अंकल आ जाए


"दादा जी अगला मुहावरा है, अंत भला तो सब भला " मानव ने कहा

ये मुहावरा सुन दीन दयाल जी को कुछ हुआ और वो खुद को सँभालते हुए बोले " बेटा इसका अर्थ होता है, कि जब इंसान किसी मुश्किल दौर से गुज़रता है या फिर गुज़र रहा होता है तब उसे उम्मीद होती है, कि एक दिन सब ठीक हो जाएगा, एक दिन उसकी परेशानियों का भी अंत हो जाएगा, और अगर अंत  अच्छा हुआ तो उसे लगेगा की उसने जो कुछ भी बुरा समय, बुरे हालात देखे थे उसे जीते जी उनका फल मिल गया, इसलिए ही हमारे पूर्वजों ने इस मुहावरें को बनाया कि अंत भला तो सब भला

अब इसे मैं तुम्हे कहानी के माध्यम से समझाता हूँ, दीन दयाल जी कुछ कहते तब ही उन्हें कुछ हुआ और वो चककर खा कर जमीन पर गिर गए


जिसके बाद तो घर में कोहराम सा मच गया, मानव और राधिका से जो कुछ हो सकता था वो सब किया, लेकिन कोई फायदा नही हुआ, वो उन्हें वहाँ के सरकारी अस्पताल लेकर गए, लेकिन वहाँ तो डॉक्टर ही नही थे सिर्फ वार्डबोय और नर्सो पर ही अस्पताल चल रहा था, पूछने पर पता चला कि डॉक्टर लोग अपने अपने प्राइवेट क्लिनिक पर बैठे है, जो उन्होंने दुसरे शहरो और कजबो में खोल लिए है


दीन दयाल जी को तुरंत ही शहर ले जाना जरूरी पड़ गया था, क्यूंकि वहाँ कुछ भी तो सहूलत नही थी, सुष्मा जी और मानव का तो रो रोकर बुरा हाल हो गया था

शुक्र था की, ड्राइवर जल्दी आ गया था, जिसके साथ वो लोग शहर आ गए, जहाँ आशीष उन्हें अपने ही अस्पताल में ले गया, वो तो इस हालत में नही था की उन्हें देख पाए, वो तो घबरा गया था इसलिए किसी अन्य डॉक्टर ने ही उनका इलाज किया


जिसके बाद पता चला की उन्हें हल्का सा हार्ट अटैक आया था, लगता था किसी चीज को लेकर बहुत चिंतित थे, कोई टेंशन थी उनके दिमाग़ पर शायद किसी से दूर होने का दुख या चिंता थी उन्हें लेकिन आप लोग चिंता न करे थोड़ी देर बाद उन्हें होश आ जाएगा सब ठीक हो जाएगा, आप उनसे मिल लेना, लेकिन हाँ अगर थोड़ी सी देर हो जाती तो शायद हालात बिगड सकते थे


सबने राहत की सास लीं, लेकिन आशीष को अब एहसास हो रहा था, कि उसके पिता क्यूँ चाहते थे की वो पढ़ लिख कर डॉक्टर बन कर अपने गांव में ही रहे और वही के लोगो का इलाज करे क्यूंकि आज जब उस पर गुज़री तब उसे दूसरों के दर्द का एहसास हुआ


थोड़ी देर बाद दीन दयाल जी को होश आ गया था, उनसे मिलने सबसे पहले आशीष ही पंहुचा और उनके सामने हाथ जोड़ कर माफ़ी मांगने लगा,


दीन दयाल जी, जो की बोलने की हालात में नही थे, लेकिन वो अपने बेटे को रोता भी तो नही देख सकते थे, इसलिए उन्होंने अपना ऑक्सीजन मास्क हटाते हुए अपने बेटे के जुड़े हुए हाथो को थामा और बोले " मुझे माफ कर देना इतने सालों तुझसे नाराज़ रहा "

"नही पिता जी आप सही थे, मैं गलत था और इसका अंदाजा आज मुझे हो गया, जब आपको लेकर मैं उस अस्पताल पंहुचा जो की बनाया तो मरीज़ों के इलाज के लिए था, लेकिन मेरी तरह ही सोच रखने वाले डॉक्टर वहाँ काम न करके अपना अलग क्लिनिक चला रहे है, ताकि अच्छी आमदनी कर सके, लेकिन अब मुझे एहसास हो गया और अब मैं कोशिश करूंगा की जल्द से जल्द अपने लोगो के लिए कुछ कर सकूँ,"आशीष ने कहा


"ठीक कहा बेटा, मनुष्य को जब तक दुसरे का दर्द और दुख मज़ाक ही लगता है, जब तक की वो उसपर न गुज़रे, मुझे ख़ुशी है की तुम्हे एहसास हो गया, समय रहते लाओ बाकी घर वालों को भी बुला लाओ, उनसे भी मिलना है और खास कर मानव को उसकी कहानी अधूरी रह गयी थी, अंत भला तो सब भला " दीन दयाल जी ने कहा


"नही पापा जी,, उसकी कहानी अधूरी नही रही, बल्कि उसकी इस कहानी को तो उसने खुद ही देख लिया, देखिए न आज सब अच्छा हो गया, यानी कि अंत भला तो सब भला इससे अच्छी कहानी और कहा देखने को मिलेगी, आप और आशीष के बीच कि नाराज़गी ख़त्म हो गयी, इन्हे अपनी गलती का एहसास हो गया इससे अच्छा किसी कहानी का अंत क्या होगा, और अब आप परेशान न हो इनके साथ साथ मैं भी यही आने की कोशिश करूंगी ताकि  आपका सपना पूरा हो जाए " पीछे ख़डी राधिका ने कहा


सब लोग बेहद खुश थे, खास कर मानव


समाप्त,,,,,,,


मुहावरों की दुनिया हेतु आखिरी कहानी 

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4 Comments

अदिति झा

17-Feb-2023 10:35 AM

Nice 👍🏼

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Varsha_Upadhyay

16-Feb-2023 08:41 PM

बहुत खूब

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